Thursday, April 28, 2011

भगवान श्री एक्लिंजिनाथ का प्रगट्य कैसे हुआ?

भगवान श्री एक्लिंजिनाथ का प्रगट्य कैसे हुआ?

श्री एकलिंगजी भगवानके वरिस्ट पुजारी प. पु. वन्दनीय श्री नरेन्द्र प्रकाशजीके कथन अनुसार श्री एकलिंग नाथकी प्राकट्य कथा संक्सिप्तमे इस प्रकार है

माँ पार्वतीके विवाह करनेके बाद एकबार भगवान शिवजी एवं माँ पार्वती एकबार भ्रमण करते हुए रुशिओके आश्रमके निकटसे निकले तब माता पार्वतिने विनोद कियाकी एकबार विवाह्के पहले आपने कामदेवकोभी लज्जित करे ऐसा रूप धारण किया था . क्या आप वैसाही रूप अबभी धारण कर सकते हो?

श्री एकलिंग माहात्म्य के अनुसार भगवानने परम सुकुमारका ऐसा रूप धारण कियाकी सभी रुशिपत्नी यह सुकुमारके नित्य दर्शन को जाने लगी. एकदिन भगवान अंतर्ध्यान हो गए. सभी रुशिपत्नीए भाव विह्वल होकर विलाप करने लगीतो रूशीओने क्रोधित होकर भगवानको लिंग्पातका श्राप दिया. रुशिओका श्राप भगवानको लग गया. तब संसारके सर्वनाशकी नोबत आ गई.

तब ब्रहस्पतिजीके आदेश अनुसार कामधेनुको पृथ्वी पर भेजा गया. कामधेनुने यह जगा पर पैर रखा और अपना दूध बहाने लगी. ज्यो ज्यो दूध जमिनमे जाता गया शिवलिंग बहार आता गया. शिवलिंग बहार आनेके बाद चारो और डोलायमान होने लगा तब उसे स्थिर करनेके लिए भगवान सूर्यनारायण ने पुर्वदिशासे, ब्रह्माजीने पश्चिम दिशासे, विष्णुजीने उत्तर दिशा से और भगवान शंकर ने द्क्सिन दिशा में ( चारो दिशाओमें ) अपनी पीठ लगाकर मध्यमे लिंगको स्थिर किया. इस तरह यह सभी मुख शंकर के ही मुख हो गए. पूजा विधानमे इनके नाम भिन्न है.

१. पश्चिम - सध्धोजत

२. उत्तर- वामदेव

३. द्क्सिन - अघोर

४. पूर्व- तत पुरुष

५. मध्य- इशान

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