Thursday, April 28, 2011

Darshan Timings of Shri Eklingji (Kailashpuri)

Darahan Timings of Shri Eklingji

From 15/04/2010 to 21/11/2010

Mornting Starts : 04:00 o’clock

Noon Starts : 10:30 o’clock

Evening Starts : 05:30 o’clock

From 22/11/2010 to 04/03/2011

Mornting Starts : 04:30 o’clock

Noon Starts : 10:30 o’clock

Evening Starts : 05:00 o’clock

From 05/03/2011 to 03/05/2011

Mornting Starts : 04:15 o’clock

Noon Starts : 10:30 o’clock

Evening Starts : 05:15 o’clock

N.B.

1. Darshan keeped open during pooja time.

2. Opening time is fixed but closing time for darshan is not fixed. Pooja takes 02:30 (hh:mm) to 3:00 (hh:mm) time in every phase.

3. Generally darshan are opened 15 minutes earlier and closes 15 to 20 minutes late on every Monday and every Shani Pradosh day.

4. Mostley times are maintained but they can be changed on special days such as Shivratri, Patotsav etc.

5. Please consider this time table as guide lines. We do not accept any reponcibility for changes in timings.

6 .Temple opening timings are deciede according to the seasons of Summer, Winter, Spring as well as according to the Hindu Calendar.

हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग-रूप वेश-भाषा चाहे अनेक है ।]

[दृश्य: पहला]

दो लोग परस्पर लड़ रहे हैं तभी कोई तीसरा वहां आ जाता है, फिर कोई चौथा। और आगन्तुक इस बात पर चर्चा शुरु कर देते हैं कि कौन सही है, कौन गलत !!

ऐसी विशिष्टता का धारक शहर है- कोलकाता ।

[दृश्य: दूसरा]

दो लोग परस्पर लड़ रहे हैं एवं कोई तीसरा व्यक्ति वहां आता है, उन दोनों को लड़ते हुए देखता है और टहलने लगता है।

ऐसी विशिष्टता का धारक शहर है- मुम्बई ।

[दृश्य: तीसरा]

दो लोग परस्पर लड़ रहे हैं एवं कोई तीसरा जना आता है और सुलह कराने की कोशिश करता है । तब पहले वाले दोनों अपना लड़ना भूलकर उस तीसरे को पिटना शुरु कर देते हैं ।

भाईयों ऐसा "दिल्ली" में ही हो सकता है ।

[दृश्य: चौथा]

दो लोगों में भयानक लड़ाई हो रही है, भीड़ उनदोनों का लड़ना देखने के लिए इर्द-गिर्द इकठ्ठा हो गई है । एक अन्य व्यक्ति धीरे-धीरे आता है और चुपचाप अपनी दुकान खोल लेता है ।

भाईयों यह शहर "कर्णावती/अहमदाबाद" है ।

[दृश्य: पाँचवां]

दो लोग लड़ रहे हैं, एक तीसरा व्यक्ति उनकी लड़ाई को देखता है । एवं उस लड़ाई को रोकने हेतु एक सॉफ़्टवेयर प्रोग्राम को डेवलप करने की कोशिश करता है किन्तु लड़ाई फिर भी बन्द नहीं होती । कारण कि उस प्रोग्राम में बग है ।

लोगों ! यह शहर "बंगलुरु" है ।

[दृश्य: छठा]

दो लोग लड़ रहे हैं । भीड़ उनकी लड़ाई को देख रही है । एक अन्य साहब आते हैं और बड़े ही नम्र अंदाज में कहते हैं- "अन्ना ! बंद करो ये बेवकूफ़ी ।" और इतना कहते ही लड़ाई थम जाती है ।

लोगों ! यह शहर "पहले का मद्रास और अभी का चेन्नई" है ।

[दृश्य: सातवां]

दो लोग लड़ रहे हैं । अचानक दोनों ने "टाइम-आउट" लिया और अपने मित्रों को मोबाइल से कॉल करने लगे । कुछ देर बाद पचास के लगभग लोगों में लड़ाई हो रही है ।

दोस्तों !! "पंजाब" में आपका स्वागत है ।

[मित्रों, इसे चाय के साथ "कुरकुरे" के रूप में ही ग्रहण करें । बाकी तो सब ठीक ही है....हिन्द देश के निवासी, सभी जन एक हैं । रंग-रूप वेश-भाषा चाहे अनेक है ।]

भगवान श्री एक्लिंजिनाथ का प्रगट्य कैसे हुआ?

भगवान श्री एक्लिंजिनाथ का प्रगट्य कैसे हुआ?

श्री एकलिंगजी भगवानके वरिस्ट पुजारी प. पु. वन्दनीय श्री नरेन्द्र प्रकाशजीके कथन अनुसार श्री एकलिंग नाथकी प्राकट्य कथा संक्सिप्तमे इस प्रकार है

माँ पार्वतीके विवाह करनेके बाद एकबार भगवान शिवजी एवं माँ पार्वती एकबार भ्रमण करते हुए रुशिओके आश्रमके निकटसे निकले तब माता पार्वतिने विनोद कियाकी एकबार विवाह्के पहले आपने कामदेवकोभी लज्जित करे ऐसा रूप धारण किया था . क्या आप वैसाही रूप अबभी धारण कर सकते हो?

श्री एकलिंग माहात्म्य के अनुसार भगवानने परम सुकुमारका ऐसा रूप धारण कियाकी सभी रुशिपत्नी यह सुकुमारके नित्य दर्शन को जाने लगी. एकदिन भगवान अंतर्ध्यान हो गए. सभी रुशिपत्नीए भाव विह्वल होकर विलाप करने लगीतो रूशीओने क्रोधित होकर भगवानको लिंग्पातका श्राप दिया. रुशिओका श्राप भगवानको लग गया. तब संसारके सर्वनाशकी नोबत आ गई.

तब ब्रहस्पतिजीके आदेश अनुसार कामधेनुको पृथ्वी पर भेजा गया. कामधेनुने यह जगा पर पैर रखा और अपना दूध बहाने लगी. ज्यो ज्यो दूध जमिनमे जाता गया शिवलिंग बहार आता गया. शिवलिंग बहार आनेके बाद चारो और डोलायमान होने लगा तब उसे स्थिर करनेके लिए भगवान सूर्यनारायण ने पुर्वदिशासे, ब्रह्माजीने पश्चिम दिशासे, विष्णुजीने उत्तर दिशा से और भगवान शंकर ने द्क्सिन दिशा में ( चारो दिशाओमें ) अपनी पीठ लगाकर मध्यमे लिंगको स्थिर किया. इस तरह यह सभी मुख शंकर के ही मुख हो गए. पूजा विधानमे इनके नाम भिन्न है.

१. पश्चिम - सध्धोजत

२. उत्तर- वामदेव

३. द्क्सिन - अघोर

४. पूर्व- तत पुरुष

५. मध्य- इशान